हमारे देश में नाना प्रकार की जड़ी बूटियां और वनस्पतियां उपलब्ध हैं और प्रत्येक जड़ी बूटी किसी न किसी हेतु के लिए उपयोगी होती है । इस स्तम्भ के अन्तर्गत जड़ी बूटियों एवं वनस्पतियों के गुण और उपयोग का विवरण, परिचय सहित प्रकाशित किया जाता है । इस किस्त में औषधीय गुणों से भरपूर “लोध्र’के बारे में विवरण प्रस्तुत है ।
इस परिचय माला में हम एक बहुत गुणकारी जड़ी बूटी यानी वनस्पति लोध्र के विषय में विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। भाव प्रकाश निघण्टु में लिखा है-
लोध्रो ग्राही लघुः शीतः चक्षुष्यः कफपित्तनुत् । कषायो रक्त पित्तासृग्ज्वरातीसार शोथ ह्रत् ।। :- भाषा भेद से नाम भेद- संस्कृत
लोध्र। हिन्दी-लोध्र । मराठी-लोध्र। गुजराती-लोदर। बंगला-लोधकाष्ट। तैलगु– लोधुग । तामिल-बेल्लिलेठि । मलयालम– पचोट्टि । कन्नड़-पचेट्टु। इंगलिश-लोध्र ट-ली (lodh Tree).। लैटिन– सिम्पलोकस रेसिमोसा
गुण-
इसकी छाल ग्राही, हलकी, शीतल, नेत्रों को हितकारी, कफ पित्त नाशक, कषाय रस युक्त तथा रक्त विकार, रक्त पित्त, ज्वर, अतिसार और शोथनाशक होती है। यह रक्त स्राव रोकने वाली, घाव भरने वाली और बलदायक तथा मूत्र विकारों को दूर करने वाली होती है।
परिचय-
लोध्र का वृक्ष मध्यम ऊंचाई का होता है और इसकी छाल लोध्र के नाम से बाज़ार में मिलती है और छाल ही औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। इसके वृक्ष बंगाल, आसाम, हिमालय तथा खासिया पहाड़ियों से छोटा नागपुर तक पाये जाते हैं। इसका एक प्रकार होता है जिसे पठानी लोध्र या पटिया लोध्र कहते हैं। दोनों में गुण एक जैसे ही होते हैं। इस वृक्ष की छाल में लाटुरिन (loutrin), कोलुटुरिन (coloutrin) तथा लाटुरिडिन (Loturidine) नामक क्षाराभ पाये जाते हैं। इसकी छाल रक्त स्तम्भक और शोथ हर होने से यह रक्त प्रदर, गर्भाशय शिथिलता तथा त्वचा के लिए बहुत गुणकारी होती है।
उपयोग-
लोध्र का उपयोग प्रमुख रूप से नारी-रोगों, त्वचा रोगों और अतिसार रोग में गुणकारी सिद्ध होता है। हम यहां “लोध्र” के सफल सिद्ध घरेलू प्रयोग प्रस्तुत कर रहे हैं।
रक्त प्रदर-
यह एक ऐसा नारी-रोग है जिससे अधिकांश महिलाएं पीड़ित पाई जाती हैं। इस रोग में मासिक ऋतु स्राव की अवधि 3-4 दिन तक सीमित न रह कर बढ़ जाती है और कई दिनों तक अधिक मात्रा में रक्त स्राव होता रहता है। इसे “रक्त प्रदर’ होना कहते हैं। महीन पिसा हुआ पठानी लोध्र चूर्ण और पिसी हुई मिश्रीदोनों 3-3 ग्राम मिला कर, ठण्डे पानी के साथ, दिन में चार बार, 4-5 दिन तक सेवन करने से रक्त स्राव होना बन्द होता है।
स्तनों की पीड़ा-
लोध्र को पानी में पीस कर इसका लेप स्तनों पर लगाने से स्तनों की पीड़ा दूर होती है।
मसूढ़ों का रोग-
मसूढ़े पिलपिले हों, उनसे रक्त निकलता हो तो एक चम्मच लोध्र चूर्ण दो गिलास पानी में डाल कर उबालें। जब पानी आधा गिलास बचे तब उतार कर छान लें। इस काढ़े से सुबह शाम कुल्लें करने से मसूढ़े ठीक हो जाते हैं और रक्त आना बन्द होता है।
योनिक्षत-
लोध्र का महीन पिसा चूर्ण शहद में मिला कर सोते समय योनि-मार्ग में लगाने से कुछ दिनों में योनि के अन्दर हुए क्षत (घाव) ठीक हो जाते हैं।
सूजन और घाव-
लोध्र के चूर्ण को शहद में मिला कर लेप करने से सूजन व घाव ठीक होते हैं।
मुख लेप-
लोध्र, धनिया और बचइन तीनों को सम मात्रा में ले कर पानी के साथ कूट पीस कर महीन लेप तैयार कर मुख पर लगाएं और सूखने दें। सूख जाए तब मसल कर धो डालें। यह प्रयोग लागातार लाभ न होने तक करें। इससे चेहरे की त्वचा साफ, उजली और चमकदार होती है।
सौन्दर्य उबटन-
लोध्र, चन्दन बुरादा, अगर, खस और सुगन्धबाला- इन्हें सम मात्रा में, आवश्यकता के अनुसार मिला कर, पानी में भिगो दें फिर सिल पर पीसते समय केशर की 10-15 पंखड़ियां डाल कर महीन पीस लें। स्नान करते समय पहले शरीर पर पानी डाल कर गीला कर लें फिर यह
उबटन लगा कर पूरे शरीर को खूब मसलें। इसके बाद स्नान कर लें। यह उबटन शरीर की त्वचा को स्वस्थ, सुन्दर, कान्तिमान और सुगन्धित करता है। आयुर्वेदिक योग लोध्रासव और लोध्रादि क्वाथ का यह लोध्र प्रमुख घटक द्रव्य है|