यदि हम सीखना चाहें तो कदम-कदम पर सीख सकते हैं, नसीहत ले सकते हैं जैसा कि शायर जनाब एहसान दानिश ने कहा है- “अहसास मर न जाए तो इन्सान के लिए। काफी है एक, राह में, ठोकर लगी हुई।’ हम दूसरों के परिणाम देख कर शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं क्योंकि
प्रत्येक शिक्षा खुद अनुभव करके ही ग्रहण करें ऐसा सम्भव न भी हो तो भी अति कठिन ज़रूर है। आग से हाथ जल जाता है यह हमने दूसरों से सुना और मान लिया है। अब यह ज़रूरी थोड़े ही है कि हम खुद अपना हाथ आग में डाल कर अनुभव प्राप्त करें। सांप काट ले तो मृत्यु हो जाती है इसके लिए सांप से कटवा कर अनुभव प्राप्त करेंगे क्या ? जिन बुरे कामों के बुरे परिणाम दूसरे भोग रहे हैं उन्हें देख कर बुरे कामों को न करने की शिक्षा ग्रहण कर लेना बुद्धिमानी है। आगे वाले को गिरता देख कर यदि पीछे वाला होशियार हो जाए तो वह बुद्धिमान है।
एक महिला अपने पुत्र को स्कूल में भरती कराने के लिए ले गई। आवश्यक खाना पूर्ति हो जाने के बाद वह पुत्र को लेकर क्लास टीचर के पास पहुंची। क्लास टीचर को नमस्कार कर अपने पुत्र के बारे में बताते हुए उस महिला ने कहा- मास्टरजी ! मेरा बच्चा बहुत सीधे और कोमल स्वभाव का है, संवेदनशील और तीव्र बुद्धिवाला है। इसे मारना तो क्या, डांटने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। फिर भी अगर कभी ऐसी ज़रूरत आन पड़े तो आप इसे न डांट कर पड़ौस के बच्चे को डांट देंगे तो भी यह शिक्षा ग्रहण कर लेगा।